माहदवीयत बारहवें इमामे मासूम के ज़ुहूर पर यक़ीन व विश्वास का नाम है जो पैगंबर अकरम स0 अ0 के ख़ानदान से हैं यानी आखरी ज़माने में एक
निजात दिलाने वाला रहबर का विश्वास रखना जो दुनिया को अदलो इन्साफ़ से इस तरह से भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्म से भरी होगी।
माहदवीयत पर विश्वास कोई नया अक़ीदा नहीं है बल्कि यह बहुत पुराना है इस के हामी एक दो नहीं बल्कि ज़्यादातर इस्लाम को मानने वाले थोड़े से
इख़्तिलाफ के साथ यही विश्वास रखते हैं लेकिन सोचने की बात यह है कि शियों का माहदवीयत पर विश्वास दूसरे लोगों से अलग है.... दूसरे लोगों से अलग इस लिए है
कि दूसरे लोग माहदवीयत पर विश्वास के सिलसिले में हद से ज़्यादा मन मानी की गई है लेकिन शियों के माहदवीयत पर विश्वास में मन मानी और तब्दीली नहीं की गई है
ब्लकि वास्तविकता पर आधारित है। यह विश्वास इस लिए सही है कि यह इमामों की हदीस व रिवायत से लिया गया है।
हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की विलादत15 शाबान 225 हिजरी को इराक़ के एक शहर सामर्रा में हुई। 260 हिजरी में आप के वालिद का शहादत हुई और उसी वक़्त
आप मनसबे इमामत पर फ़ाएज़ होए। कुछ कारणों से आप शुरू से पूशीदा हैं, 70 साल तक आप के ख़ास नुमाइंदों के ज़रिये आप से बातें होती रही, इस 70 साल की
मुद्दत को ग़ैबते सुग़रा कहा जाता है और इस के बाद ग़ैबते कुबरा का ज़माना शुरू हो जाता है।
आज जिस ज़माने में हम जिंदगी गुज़ार रहे हैं वह इमाम की ग़ैबते कुबरा का ज़माना है, ग़ैबते के ज़माने में शियों के ऊपर बहुत सी जिम्मेदारियां हैं। पहली और अहम ज़िम्मेदारी यह है कि वह इमाम को हाज़िर जानकर उनकी इताअत व पैरवी करें दूसरी अहम ज़िम्मेदारी यह है कि हर वक़्त आप का इंतजार किया जाए।
लेकिन इंतजार के मतलब यह नहीं है कि इंसान अपने हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाए इस उम्मीद में कि जब इमाम का ज़ुहूर होगा तो तमाम काम सही हो जाएगा और इस उम्मीद
में अपने कामों से मुंह फेर लिया जाए।